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फिल्म समीक्षा:सिंह इज़ ब्लिंग, ढूंढते रह जाओगे कहानी, (स्टार 2.5)

             फिल्म 'राउडी राठौड़' की जोड़ी निर्देशक प्रभु देवा और अक्षय कुमार लेकर हाज़िर हुए हैं "सिंह इज़ ब्लिंग"ज़ाहिर है कि कॉम्बिनेशन वही है तो ट्रीटमेंट भी वैसा ही होगा। फिल्म में आपको अपना दिमाग लगाने की ज़रूरत बिलकुल नहीं है वरना आप कुछ मिनट भी थिएटर में टिक नहीं पाएंगे। कहानी का मामला ऐसा है कि आप बस ढूंढते रह जायेंगे कि कहानी किधर है ?पंजाब का एक निकम्मा लड़का रफ़्तार सिंह (अक्षय कुमार)एकदम बुद्धू है अक्ल उसके पास बिलकुल नहीं है उसकी हरकतें आपको हंसा सकती हैं उसकी बेवकूफियां हास्य पैदा करती हैं। उसके पिता उसे कहते हैं कि या तो वो बहुत मोटी लड़की स्वीटी से शादी कर ले या फिर गोवा में जाकर कुछ काम करे। रफ़्तार अपने पिता के दोस्त के यहाँ गोवा जाना पसंद करता है। दूसरी तरफ रोमानिया में मार्क (के के मेनन) एक गैंग का डॉन है और उसकी नजरें एक दूसरे डॉन की बेटी सारा (एमी जैक्सन) पर टिकी हैं।सारा अपनी माँ की तलाश में गोवा जाती है और यहाँ मुलाकात होती है सारा और रफ़्तार की। सारा हिंदी नहीं जानती और रफ़्तार अंग्रेजी नहीं जानता इस मुश्किल को दूर करने के लिए आता है इमली का किरदार जो इनके अनुवादक का रोल प्ले करती है वह है लारा दत्ता। फिर कैसे कहानी आगे बढ़ती है यह देखना दिलचस्प रहता है लेकिन लॉजिक से बहुत दूर इस फिल्म में एमी जैक्सन के ऐक्शन सींस देखकर दर्शक अभिभूत रह जायेंगे उन्होंने खतरनाक स्टंट्स किये हैं और हीरो के अलावा हीरोइन ज़बरदस्त मार धाड़ करती नज़र आती है इस फिल्म के बाद एमी जैक्सन के लिए बॉलीवुड के द्वार अवश्य खुलते नज़र आएंगे क्योंकि उन्होंने जिस सुंदरता से अपने चरित्र को पेश किया है उससे उनकी अभिनय क्षमता उभर कर सामने आ गई है और "एक दीवाना था"(जो उनकी पहली फिल्म थी )से हिंदुस्तानी दर्शक उन्हें भूल बैठे थे परन्तु इस फिल्म के बाद उनके पास कई ऑफर्स आने चाहिए। फिल्म में खुद प्रभु देवा ने भी अपनी एक झलक दिखाई है मगर बड़े ही फूहड़ ढंग से। सन्नी लियोन भी एक सीन में दिख जाएँगी। मगर मार्क के रोल में के के मेनन इस फिल्म का सरप्राइज़ पैकेज हैं उन्होंने अपने चरित्र को यादगार बना दिया है। अक्षय कुमार ऑफकोर्स इस के हीरो हैं और उनके फैंस के लिए इसमें सबकुछ है पूरा मसाला मतलब थोड़ा डांस,थोड़ी मस्ती,थोड़ी कॉमेडी,थोड़ा ऐक्शन,थोड़ा रोमांस। . मगर बतौर ऐक्टर वह प्रभावित नहीं करते बल्कि कहीं कहीं वह स्वयं को दोहराते प्रतीत होते हैं। म्यूजिक इसका कमज़ोर पहलु है गानो की भरमार भी खटकती है कुछ दृश्यों के बाद एक गाना आ जाता है। संवाद बेहतर लिखे प्रतीत होते हैं पटकथा को बेहतर किया जा सकता था। बेहतरीन लोकेशंस को सिनेमाटोग्राफर ने बेहतर अंदाज़ में कैद किया है .
 
गाज़ी मोईन